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नई नस्ल के नुमाइंदा शाइरों और फ़िक्शन निगारों में शामिल

नई नस्ल के नुमाइंदा शाइरों और फ़िक्शन निगारों में शामिल

वफ़ा नक़वी का परिचय

मूल नाम : सय्यद बसीरुल हसन नक़वी

जन्म : 12 Feb 1983 | शिकारपुर, उत्तर प्रदेश

बस इक निशान सा बाक़ी था कच्चे आँगन में

परिंदा लौट के आया तो मर चुका था दरख़्त

डाॅक्टर वफ़ा नक़वी, जिनका अस्ल नाम सय्यद बसीरुल हसन नक़वी है, उर्दू अदब के एक मुमताज़ तख़लीक़-कार हैं। उनका आबाई वतन शिकारपुर, ज़िला बुलंदशहर है, जहाँ वह 12 फ़रवरी 1983 को पैदा हुए। उनकी इब्तिदाई तालीम से लेकर पी.एच.डी. तक का तालीमी सफ़र अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में मुकम्मल हुआ।
वह ब-यक-वक़्त एक शाइर, अफ़्साना-निगार और तब्सरा-निगार की हैसियत से पहचाने जाते हैं। उर्दू के अदबी मुशाइरों में निज़ामत के साथ-साथ वह अय्याम-ए-अज़ा में ज़ाकिरी भी करते हैं। उनकी तख़लीक़ात में तनव्वो और गहराई पाई जाती है, जिसका इज़हार उनकी पाँच किताबोंः ‘रंग ख़ुशबू सबा’, ‘मोम की लड़की’, ‘सहीफ़ा-ए-नक़्द’, ‘सहीफ़ा-ए-नज़र’ और ‘सहीफ़ा-ए-फ़न’ (2025) में बख़ूबी होता है।
अलावा अज़ीं, वह कई किताबों के मुअल्लिफ़ भी हैं। उनकी इल्मी-ओ-तन्क़ीदी बसीरत का एक नुमायाँ इज़हार, इज़हार नक़वी की किताब ‘मेराज-ए-अक़ीदत’ के मुक़द्दमे में नज़र आता है, जहाँ वह तक़दीसी शाइरी की नई जिहतों की निशान-दिही करते हैं। उनकी अदबी ख़िदमात उर्दू अदब में एक मुन्फ़रिद मक़ाम रखती हैं, जो न सिर्फ़ तख़लीक़ी सतह पर बल्कि तन्क़ीदी मैदान में भी क़ाबिल-ए-क़द्र समझी जाती हैं।

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