वली आलम शाहीन
ग़ज़ल 37
नज़्म 12
अशआर 1
दिए हैं ज़िंदगी ने ज़ख़्म ऐसे
कि जिन का वक़्त भी मरहम नहीं है
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere