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वली दकनी

1667 - 1707 | गुजरात, भारत

दिल्ली में उर्दू शायरी को स्थापित करने वाले क्लासिकी शायर

दिल्ली में उर्दू शायरी को स्थापित करने वाले क्लासिकी शायर

वली दकनी

ग़ज़ल 40

अशआर 26

जिसे इश्क़ का तीर कारी लगे

उसे ज़िंदगी क्यूँ भारी लगे

मुफ़लिसी सब बहार खोती है

मर्द का ए'तिबार खोती है

याद करना हर घड़ी तुझ यार का

है वज़ीफ़ा मुझ दिल-ए-बीमार का

चाहता है इस जहाँ में गर बहिश्त

जा तमाशा देख उस रुख़्सार का

फिर मेरी ख़बर लेने वो सय्याद आया

शायद कि मिरा हाल उसे याद आया

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जिसे इश्क़ का तीर कारी लगे

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जिसे इश्क़ का तीर कारी लगे

वली दकनी

ऑडियो 5

ख़ूब-रू ख़ूब काम करते हैं

जिसे इश्क़ का तीर कारी लगे

तुझ लब की सिफ़त ला'ल-ए-बदख़्शाँ सूँ कहूँगा

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