aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1692 - 1775 | हैदराबाद, भारत
उर्दू शायरी को परम्परा निर्माण करने वाले अग्रणी शायरों में शामिल
ऐ सालिक इंतिज़ार-ए-हज में क्या तू हक्का-बक्का है
बगूले सा तो कर ले तौफ़ दिल पहलू में मक्का है
कुछ ग़ौर का जौहर नहीं ख़ुद-फ़हमी में हैराँ हैं
इस अस्र के फ़ाज़िल सब सतही हैं जूँ आईना
तिरी ज़ुल्फ़ की शब का बेदार मैं हूँ
तुझ आँखों के साग़र का मय-ख़्वार मैं हूँ
पीर हो शैख़ हुआ है देखो तिफ़्लों का मुरीद
मुर्दा बोला है कफ़न फाड़ क़यामत आई
सख़्त पिस्ताँ तिरे चुभे दिल में
अपने हाथों से मैं ख़राब हुआ
Deewan-e-Uzlat
1962
Raag Mala
1971
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