वाक़िफ़ देहलवी के शेर
सब से मिलते तो हो ज़ाहिर में ये धड़का है मुझे
कहीं मुझ सा न कोई और गिरफ़्तार मिले
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ख़याल-ए-वादा तिरा बस-कि शब नज़र में रहा
तमाम रात मिरा जी सदा-ए-दर में रहा
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