वसीम अकरम
ग़ज़ल 4
अशआर 5
कैसे उस को दिल की हालत समझाऊँ
बात करूँ तो आँख चुराने लगता है
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देख उसे सब ज़िक्र हमारा करते हैं
उस की आँख में सिर्फ़ हमारा चेहरा है
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मुझ को दुनिया से बे-ख़बर कर दे
देख ले मुझ को मो'तबर कर दे
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कोई सूरत नहीं मगर उस का
कोरे काग़ज़ पे नाम बाक़ी है
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आज व'अदा वो फिर निभाएगा
वादी ओ गुल पे क्या ख़ुमारी है
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