वासिफ़ बनारसी के शेर
सज़ा देते हैं 'वासिफ़' सब को वो जुर्म-ए-मोहब्बत पर
नहीं मेरे लिए कोई सज़ा ये है सज़ा मेरी
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फिर सी रहा हूँ पैरहन-ए-तार-तार को
फिर दाग़-बेल डाल रहा हूँ बहार की
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