यूसुफ़ हसन
ग़ज़ल 9
नज़्म 1
अशआर 2
इसी पे शहर की सारी हवाएँ बरहम थीं
कि इक दिया मिरे घर की मुंडेर पर भी था
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इसी खंडर में मिरे ख़्वाब की गली भी थी
गली में पेड़ भी था पेड़ पर समर भी था
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