ज़फ़र अनवर
ग़ज़ल 3
अशआर 3
ख़ून-ए-जिगर आँखों से बहाया ग़म का सहरा पार किया
तेरी तमन्ना की क्या हम ने जीवन को आज़ार किया
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दिल की ज़ख़्मों को किया करता है ताज़ा हर-दम
फिर सितम ये है कि रोने भी नहीं देता है
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बात जब है कि हर इक फूल को यकसाँ समझो
सब का आमेज़ा वही आब वही गिल भी वही
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