ज़फ़र गौरी के दोहे
सर अपना रख हाथ पे कौन बढ़ाए हाथ
नेज़ों के सर चढ़ने वाले आएँ हमारे साथ
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सहरा में रह रह चमके ख़ून की एक लकीर
इक ज़ख़्मी आवाज़ किसी की हुई दिलों में तीर
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