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ज़फ़र हमीदी

ग़ज़ल 7

अशआर 3

बादलों ने आज बरसाया लहू

अम्न का हर फ़ाख़्ता रोने लगा

जाने किस किरदार की काई मेरे घर में पहुँची

अब तो 'ज़फ़र' चलना है मुश्किल आँगन की चिकनाई में

जब भी वो मुझ से मिला रोने लगा

और जब तन्हा हुआ रोने लगा

 

पुस्तकें 13

ऑडियो 7

अपने दिल-ए-मुज़्तर को बेताब ही रहने दो

क्यूँ मैं हाइल हो जाता हूँ अपनी ही तन्हाई में

जब भी वो मुझ से मिला रोने लगा

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