ज़फर इमाम
ग़ज़ल 10
अशआर 8
इक नदी में सैकड़ों दरिया की तुग़्यानी मिली
डूबने वाले को मर जाने की आसानी मिली
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जीवन का संगीत अचानक अंतिम सुर को छू लेता है
हँसता ही रहता है फिर भी मेरे अंदर मरने वाला
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देख लेते हैं अंधेरे में भी रस्ता अपना
शम्अ एहसास के मानिंद जली रहती है
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बात पहुँचे समाअत को तासीर दे किस तरह
लफ़्ज़ हैं और लफ़्ज़ों में ज़ोर-ए-बयानी नहीं
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साफ़ जज़्बों के हवाले से तो ग़म हैं लेकिन
एक लम्हे की ख़ुशी एक सदी रहती है
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