ज़फ़र सिद्दीक़ी
ग़ज़ल 12
अशआर 1
ये किस ने आँख को नंगा किया है दरिया में
महकती रेत पे कोई भी बे-लिबास न था
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere