ज़हीर अहमद ज़हीर के शेर
सैंकड़ों दिलकश बहारें थीं हमारी मुंतज़िर
हम तिरी ख़्वाहिश में लेकिन ठोकरें खाते रहे
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आँसू फ़लक की आँख से टपके तमाम रात
और सुब्ह तक ज़मीन का आँचल भिगो गए
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वो चाँदनी वो तबस्सुम वो प्यार की बातें
हुई सहर तो वो मंज़र तमाम शब के गए
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