ज़हीर देहलवी, सय्यद ज़हीरुद्दीन हुसैन (1825-1911) ‘ज़ौक़’ और ‘ग़ालिब’ के बा’द की पीढ़ी के बहुत नुमायाँ शाइ’र और ‘दाग़’ के समकालीन। ‘ज़ौक़’ के शार्गिद थे। कम-उम्री ही में, लाल क़िले में अच्छी नौकरी पा गए लेकिन अच्छे दिनों का ये सिलसिला 1857 के बा’द ख़त्म हो गया। दिल्ली छोड़ कर बरेली और रामपुर में रहे। फिर कुछ दिन दिल्ली रह कर अलवर, जयपुर और टोंक में कई साल गुज़ारे। अख़िरी उम्र हैदराबाद में गुज़री और वही पैवंद-ए-ख़ाक हुए।