ज़हीर कुरेशी के दोहे
तीन बरस की उम्र से चल बच्चे स्कूल
भारी बस्ता लाद ले भोला बचपन भूल
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सर पर नील आकाश है पैरों-तले ज़मीन
दोनों को इंसान से कोई सका न छीन
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