ज़ाहिद मसूद के शेर
शब-ए-व'अदा फ़सील-ए-हिज्र से आगे चमकता है तिरा इस्म-ए-सितारा-जू
कि जैसे कोई पैवंद-ए-रिदा-ए-सुब्ह आ जाए किसी क़िंदील की ज़द में
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तुम हब्स के मौसम को ज़रा और बढ़ा लो
बे-सम्त न हो जाएँ परिंदों की उड़ानें
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