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ज़ाहीदा कमाल

ज़ाहीदा कमाल

ग़ज़ल 1

 

अशआर 4

अफ़्साना-ए-हयात बनी फूल बन गई

जब मुस्कुराई कोई कली इज़्तिराब में

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कहना पड़ा उन्हीं को मसीहा-ए-वक़्त भी

जिन से हमारे दर्द का दरमाँ हो सका

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शामिल होते हुस्न के जल्वे अगर 'कमाल'

होता कहाँ ये नूर शब-ए-माहताब में

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जब तक तुम्हारा हुस्न नुमायाँ हो सका

रौशन चराग़-ए-आलम-ए-इम्कान हो सका

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