ज़की तारिक़
ग़ज़ल 9
अशआर 9
हम भी कहने लगे हैं रात को रात
हम भी गोया ख़राब होने लगे
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इताब-ओ-क़हर का हर इक निशान बोलेगा
मैं चुप रहा तो शिकस्ता मकान बोलेगा
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रोज़ सुनता हूँ मैं हँसने की सदा
कौन ये मेरे सिवा है मुझ में
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सिमटे हुए जज़्बों को बिखरने नहीं देता
ये आस का लम्हा हमें मरने नहीं देता
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गुमान होता है मुझ को तुम्हारे आने का
हवा इधर से दबे पाँव जब गुज़रती है
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वीडियो 10
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