ज़मान कंजाही के शेर
मैं एक उम्र से उन को तलाश करता हूँ
कुछ ऐसे लम्हे थे जो अपनी दस्तरस में रहे
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मैं रतजगों के मुकम्मल अज़ाब देखूँगा
किसी ने जो नहीं देखे वो ख़्वाब देखूँगा
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किसी भी शाख़ पर पत्ता नहीं है
हवा ने सब को नंगा कर दिया है
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