aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1959 | अलीगढ़, भारत
हज़ारों ज़ुल्म हों मज़लूम पर तो चुप रहे दुनिया
अगर मज़लूम कुछ बोले तो दहशत-गर्द कहती है
ख़ून के जो रिश्ते थे बन गए अज़ाब-ए-जाँ
हम को दल के रिश्तों से इस्तिफ़ादा पहुँचा है
ग़रीबी नाम है जिस का अज़ाब-ए-जान होती है
मगर दौलत की कसरत मोहलिक-ए-ईमान होती है
इज़्न सूरज की किरन को नहीं जाने का जहाँ
मेरी तख़्ईल का शाहीन वहाँ भी पहुँचा
कोई भूका जो फ़र्त-ए-ज़ोफ़ से कुछ लड़खड़ा जाए
तो दुनिया तंज़ कसती है उसे मद-मस्त कहती है
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