ज़रीफ़ जबलपूरी
नज़्म 9
अशआर 1
ये तरक़्क़ी का ज़माना है तिरे आशिक़ पर
उँगलियाँ उठती थीं अब हाथ उठा करते हैं
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere