ज़ेब उस्मानिया
ग़ज़ल 3
नज़्म 6
अशआर 1
रख दिया ख़ल्क़ ने नाम उस का क़यामत ऐ 'ज़ेब'
कोई फ़ित्ना जो ज़माने से उठाया न गया
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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