ज़ीशान अतहर के शेर
रौशनी में तिरी रफ़्तार से करता हूँ सफ़र
ज़िंदगी मुझ से कहीं तेज़ न चलने लग जाए
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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere