aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
1974 | कानपुर, भारत
मुद्दतों ख़ुद से मुलाक़ात नहीं होती है
रात होती है मगर रात नहीं होती है
फ़ज़ाएँ रक़्स में हैं और बरस रही है शराब
किसी ने जाम सू-ए-आसमाँ उछाला है
मुझ से नाराज़ भी नहीं है वो
और उस को मना रहा हूँ मैं
उस ने इतना किया नज़र-अंदाज़
सब की नज़रों में आ गए हैं हम
एक चेहरा तिरा देखने के लिए
कितने चेहरों से हम को गुज़रना पड़ा
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