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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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Zehra Nigaah's Photo'

पाकिस्तान की अग्रणी शायरात में विख्यात

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ज़ेहरा निगाह

aaj ke din na pucho mere dosto

ज़ेहरा निगाह

taazaa hai abhi yaad mein ai saqi-e-gulfaam

ज़ेहरा निगाह

आँखों में किसी याद का रस घोल रही हूँ

ज़ेहरा निगाह

ईरानी तलबा के नाम

ये कौन सख़ी हैं ज़ेहरा निगाह

bol

बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे ज़ेहरा निगाह

do ishq

(1) ज़ेहरा निगाह

KHurshid-e-mahshar ki lau

आज के दिन न पूछो मिरे दोस्तो ज़ेहरा निगाह

ईरानी तलबा के नाम

ये कौन सख़ी हैं ज़ेहरा निगाह

क्या करें

मिरी तिरी निगाह में ज़ेहरा निगाह

किसी कली ने भी देखा न आँख भर के मुझे

ज़ेहरा निगाह

गए दिनों का सुराग़ ले कर किधर से आया किधर गया वो

ज़ेहरा निगाह

जिस रोज़ क़ज़ा आएगी

किस तरह आएगी जिस रोज़ क़ज़ा आएगी ज़ेहरा निगाह

दुआ

आइए हाथ उठाएँ हम भी ज़ेहरा निगाह

दयार-ए-दिल की रात में चराग़ सा जला गया

ज़ेहरा निगाह

दरीचा

गड़ी हैं कितनी सलीबें मिरे दरीचे में ज़ेहरा निगाह

दिल-ए-मन मुसाफ़िर-ए-मन

मिरे दिल, मिरे मुसाफ़िर ज़ेहरा निगाह

मता-ए-लौह-ओ-क़लम छिन गई तो क्या ग़म है

ज़ेहरा निगाह

ये दाग़ दाग़ उजाला ये शब-गज़ीदा सहर

ज़ेहरा निगाह

ये शब ये ख़याल-ओ-ख़्वाब तेरे

ज़ेहरा निगाह

वो बुतों ने डाले हैं वसवसे कि दिलों से ख़ौफ़-ए-ख़ुदा गया

ज़ेहरा निगाह

सुब्ह की आज जो रंगत है वो पहले तो न थी

ज़ेहरा निगाह

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शायर अपना कलाम पढ़ते हुए

ज़ेहरा निगाह

ज़ेहरा निगाह

ज़ेहरा निगाह

Likhen to kya likhen soche to kya soche

At a private sitting in Karachi, Zehra Nigah recited selection from her own poetry as well as from various other classic poets. ज़ेहरा निगाह

Main bach gayi maa

ज़ेहरा निगाह

ज़ेहरा निगाह

ज़ेहरा निगाह

समझौता

मुलाएम गर्म समझौते की चादर ज़ेहरा निगाह

हर आन सितम ढाए है क्या जानिए क्या हो

ज़ेहरा निगाह

इंसाफ़

मैं इस छोटे से कमरे में ज़ेहरा निगाह

छलक रही है मय-ए-नाब तिश्नगी के लिए

ज़ेहरा निगाह

ज़ेहरा ने बहुत दिन से कुछ भी नहीं लिक्खा है

'ज़ेहरा' ने बहुत दिन से कुछ भी नहीं लिक्खा है ज़ेहरा निगाह

ज़ेहरा ने बहुत दिन से कुछ भी नहीं लिक्खा है

'ज़ेहरा' ने बहुत दिन से कुछ भी नहीं लिक्खा है ज़ेहरा निगाह

दिल बुझने लगा आतिश-ए-रुख़्सार के होते

ज़ेहरा निगाह

बस्ती में कुछ लोग निराले अब भी हैं

ज़ेहरा निगाह

ये हुक्म है कि अँधेरे को रौशनी समझो

ज़ेहरा निगाह

रुक जा हुजूम-ए-गुल कि अभी हौसला नहीं

ज़ेहरा निगाह

विर्सा

मुड़ कर पीछे देख रही हूँ ज़ेहरा निगाह

वो किताब

मिरी ज़िंदगी की लिखी हुई ज़ेहरा निगाह

सुना है

सुना है जंगलों का भी कोई दस्तूर होता है ज़ेहरा निगाह

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Guftgu Zehra Nigah ke Saath - Part 1

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ज़ेहरा निगाह

Hindustani Awaaz Talk Series - Part 2

ज़ेहरा निगाह

Zehra Nigah - An evening of poetry and story-telling

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