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ज़िया फ़ारूक़ी

1947 - 2024 | भोपाल, भारत

प्रसिद्ध उर्दू कवि और आलोचक, जो अपनी प्रभावशाली ग़ज़लों और साहित्यिक योगदान के लिए जाने जाते हैं

प्रसिद्ध उर्दू कवि और आलोचक, जो अपनी प्रभावशाली ग़ज़लों और साहित्यिक योगदान के लिए जाने जाते हैं

ज़िया फ़ारूक़ी

ग़ज़ल 36

नज़्म 1

 

अशआर 16

आँखें हैं कि अब तक उसी चौखट पे धरी हैं

देता हूँ ज़माने को मगर अपना पता और

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पहले था बहुत फ़ासला बाज़ार से घर का

अब एक ही कमरे में है बाज़ार भी घर भी

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बदन की क़ैद से छूटा तो लोग पहचाने

तमाम 'उम्र किसी को मिरा पता मिला

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लहू से जिन के है रौशन ये ख़ानक़ाह-ए-जुनूँ

हमारे सर पे है साया उन्हीं बुज़ुर्गों का

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शु’ऊर-ए-तिश्नगी इक रोज़ में पुख़्ता नहीं होता

मिरे होंटों ने सदियों कर्बला की ख़ाक चूमी है

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पुस्तकें 10

 

वीडियो 6

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वीडियो का सेक्शन
शायर अपना कलाम पढ़ते हुए
Main sochta hoon ye zard mausam jo mere chehre pe jam gaya hai

Ziya Farooqi was born on 1st Aug 1947 at Sandela but spent a larger part of his life in Kanpur and Bhopal. Watch him reading some of his best Urdu poetry for Rekhta Studio. ज़िया फ़ारूक़ी

अपने होने का हर इक लम्हा पता देती हुई

ज़िया फ़ारूक़ी

इश्क़ ने कर दिया क्या क्या सुख़न-आरा तिरे नाम

ज़िया फ़ारूक़ी

मैं जब भी तिरे शहर-ए-ख़ुश-ए-आसार से निकला

ज़िया फ़ारूक़ी

मिरी आँखों में जो थोड़ी सी नमी रह गई है

ज़िया फ़ारूक़ी

ये ख़्वाब सारे

ये ख़्वाब सारे ज़िया फ़ारूक़ी

ऑडियो 5

अपने होने का हर इक लम्हा पता देती हुई

इश्क़ ने कर दिया क्या क्या सुख़न-आरा तिरे नाम

मैं जब भी तिरे शहर-ए-ख़ुश-ए-आसार से निकला

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