ज़ियाउल मुस्तफ़ा तुर्क
ग़ज़ल 15
अशआर 17
किवाड़ खुलने से पहले ही दिन निकल आया
बशारतें अभी सामान में पड़ी हुई थीं
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
तिरी ख़्वाहिश किसी इम्काँ की सूरत
हमेशा मुझ में तह-दर-तह रही है
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
थोड़ी सी बारिश होती है
कितनी जल्दी भर जाता हूँ
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
मैं जागते में कहीं बन रहा हूँ अज़-सर-ए-नौ
वो अपने ख़्वाब में तश्कील कर रहा है मुझे
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
हम अपने आप से भी हम-सुख़न न होते थे
कि सारी मुश्किलें आसान में पड़ी हुई थीं
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए