ज़िया मज़कूर के शेर
फ़ोन तो दूर वहाँ ख़त भी नहीं पहुँचेंगे
अब के ये लोग तुम्हें ऐसी जगह भेजेंगे
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हवा चली तो उस की शाल मेरी छत पे आ गिरी
ये उस बदन के साथ मेरा पहला राब्ता हुआ
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