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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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ज़ुबैर अमरोहवी

ज़ुबैर अमरोहवी

ग़ज़ल 4

 

अशआर 4

एक ही घर के रहने वाले एक ही आँगन एक ही द्वार

जाने क्यूँ बढ़ती जाती है नफ़रत भाई भाई में

ग़म तो ग़म ही रहेंगे 'ज़ुबैर'

ग़म के उनवाँ बदल जाएँगे

कितने चेहरों के रंग ज़र्द पड़े

आज सच बोल कर हिमाक़त की

हर एक लम्हा तिरी याद में बसर करना

हमें भी गया अब ख़ुद को मो'तबर करना

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