ज़ुबैर क़ैसर
ग़ज़ल 17
अशआर 6
तिरा जवाब मिरे काम का नहीं है अब
कि मैं तो भूल चुका हूँ सवाल वैसे ही
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ये नफ़सियाती मरीज़ों का शहर है 'क़ैसर'
कोई सवाल उठाओगे मारे जाओगे
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मैं उस के जाल में आऊँगा देखना 'क़ैसर'
वो मुझ को धोके से घर में बुला के मारेगा
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तिरी तस्वीर उठाई हुई है
रौशनी ख़्वाब में आई हुई है
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सुब्ह तक बे-तलब मैं जागूँगा
आज तो बे-सबब मैं जागूँगा
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