ज़ुल्फ़िकार नक़वी के शेर
बेचैनी के लम्हे साँसें पत्थर की
सदियों जैसे दिन हैं रातें पत्थर की
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
अब ज़मीं पर क़दम नहीं टिकते
आसमाँ पर उक़ाब देखा है
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
खींच ली थी इक लकीर-ए-ना-रसा ख़ुद दरमियाँ
फ़ासला-दर-फ़ासला-दर-फ़ासला होना ही था
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड
सदियों के बाद होश में जो आ रहा हूँ मैं
लगता है पहले जुर्म को दोहरा रहा हूँ मैं
-
शेयर कीजिए
- ग़ज़ल देखिए
- सुझाव
- प्रतिक्रिया
- डाउनलोड