शकील जमाली के शेर
रिश्तों की दलदल से कैसे निकलेंगे
हर साज़िश के पीछे अपने निकलेंगे
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ग़म के पीछे मारे मारे फिरना क्या
ये दौलत तो घर बैठे आ जाती है
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सब से पहले दिल के ख़ाली-पन को भरना
पैसा सारी उम्र कमाया जा सकता है
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इक बीमार वसिय्यत करने वाला है
रिश्ते-नाते जीभ निकाले बैठे हैं
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हो गई है मिरी उजड़ी हुई दुनिया आबाद
मैं उसे ढूँढ रहा हूँ ये बताने के लिए
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ज़िंदगी ऐसे भी हालात बना देती है
लोग साँसों का कफ़न ओढ़ के मर जाते हैं
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कोई स्कूल की घंटी बजा दे
ये बच्चा मुस्कुराना चाहता है
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उम्र का एक और साल गया
वक़्त फिर हम पे ख़ाक डाल गया
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टैग : नया साल
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सफ़र से लौट जाना चाहता है
परिंदा आशियाना चाहता है
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हर कोने से तेरी ख़ुशबू आएगी
हर संदूक़ में तेरे कपड़े निकलेंगे
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लोग कहते हैं कि इस खेल में सर जाते हैं
इश्क़ में इतना ख़सारा है तो घर जाते हैं
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सियासत के चेहरे पे रौनक़ नहीं
ये औरत हमेशा की बीमार है
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शदीद गर्मी में कैसे निकले वो फूल-चेहरा
सो अपने रस्ते में धूप दीवार हो रही है
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टैग : गर्मी
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मैं ने हाथों से बुझाई है दहकती हुई आग
अपने बच्चे के खिलौने को बचाने के लिए
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टैग : पिता
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झूट में शक की कम गुंजाइश हो सकती है
सच को जब चाहो झुठलाया जा सकता है
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तुम्हारे बा'द बड़ा फ़र्क़ आ गया हम में
तुम्हारे बा'द किसी पे ख़फ़ा नहीं हुए हम
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अभी रौशन हुआ जाता है रस्ता
वो देखो एक औरत आ रही है
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टैग : औरत
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मौत को हम ने कभी कुछ नहीं समझा मगर आज
अपने बच्चों की तरफ़ देख के डर जाते हैं
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किन ज़मीनों पे उतारोगे इमदाद का क़हर
कौन सा शहर उजाड़ोगे बसाने के लिए
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अपने ख़ून से इतनी तो उम्मीदें हैं
अपने बच्चे भीड़ से आगे निकलेंगे
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कुछ लोग हैं जो झेल रहे हैं मुसीबतें
कुछ लोग हैं जो वक़्त से पहले बदल गए
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अगर हमारे ही दिल में ठिकाना चाहिए था
तो फिर तुझे ज़रा पहले बताना चाहिए था
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मसअला ख़त्म हुआ चाहता है
दिल बस अब ज़ख़्म नया चाहता है
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