aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम ",Joz"
बम्बई जोब बर्क़ी प्रेस, दिल्ली
पर्काशक
फ़हीम जोज़ी
शायर
होज़े सरमागो
1922 - 2010
लेखक
जोग राज योग
Prof Hasanand Jaadua Jo Ustad
जोस एम. वेड बोस्टोन मास
जॉय एंड जॉय प्रिंटर्स, हैदराबाद
मेल-जोल किताब घर
कू मो जो
जॉन कैप
सुना है आइना तिमसाल है जबीं उस कीजो सादा दिल हैं उसे बन-सँवर के देखते हैं
यूँ जो तकता है आसमान को तूकोई रहता है आसमान में क्या
तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या हैतू जो मिल जाए तो तक़दीर निगूँ हो जाए
ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लोनश्शा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें
महबूब का घर हो कि बुज़ुर्गों की ज़मीनेंजो छोड़ दिया फिर उसे मुड़ कर नहीं देखा
टूटे हुए दिलों की शायरी
रेलगाड़ियों का नाम सुनते ही हमें कई चीज़ों की याद एक साथ आती है। बचपन में खिड़की पर बैठ कर पीछे भागती ज़मीन को उत्सुकता से देखना, उन शहरों तक जा पाने की ख़ुशी जिनके बारे में सिर्फ़ सुना करते थे या अपने प्रियजनों को विदा करने के कष्ट। इन्ही यादों को संजोए हुए ये शेर पढ़िए और हमारे साथ एक भावनात्मक यात्रा पर निकल जाईए।
होली शायरी
अंधे लोग
नॉवेल / उपन्यास
Jo Mile The Raste me
अहमद बशीर
Dilli Jo Ek Shahar Tha
शाहिद अहमद देहलवी
मज़ामीन / लेख
वो जो शाइरी का सबब हुआ
कलीम आजिज़
काव्य संग्रह
Jo Maine Dekha
राव अब्दुल रशीद
इंटरव्यू / साक्षात्कार
Jo Rahi So Bekhabari Rahi
अदा जाफ़री
आत्मकथा
Jo Yad Raha
आबिद सुहैल
राजेन्द्र लाल हंडा
सांस्कृतिक इतिहास
एक भाषा जो मुसतर्द कर दी गई
मिर्ज़ा ख़लील अहमद बेग
भाषा विज्ञान
Tafseer Ibn-e-Jareer
अबू जाफ़र मुहम्मद बिन जरीर अत्तबरी
इस्लामियात
जो कहानियाँ लिखें
असद मोहम्मद ख़ाँ
अफ़साना
Ye Jo Lahore se Mohabbat Hai
फख़्र अब्बास
Aaj Bhi Ho Jo Baraheem Ka Iman Paida
अख़लाक़ हुसैन देहलवी
इस्लामिक इतिहास
Woh Jo Shairy Ka Sabab Hua
जो गुज़ारी न जा सकी हम सेहम ने वो ज़िंदगी गुज़ारी है
जो इक नस्ल-ए-फ़रोमाया को पहुँचेवो सरमाया इकट्ठा क्यों करें हम
कितने ऐश से रहते होंगे कितने इतराते होंगेजाने कैसे लोग वो होंगे जो उस को भाते होंगे
हम को उन से वफ़ा की है उम्मीदजो नहीं जानते वफ़ा क्या है
जो इश्क़ को काम समझते थेया काम से आशिक़ी करते थे
वही जो मन का मीत होउसी के प्रेम में रहूँ
डरे क्यूँ मेरा क़ातिल क्या रहेगा उस की गर्दन परवो ख़ूँ जो चश्म-ए-तर से उम्र भर यूँ दम-ब-दम निकले
यूँ तो हर शाम उमीदों में गुज़र जाती हैआज कुछ बात है जो शाम पे रोना आया
है कुछ ऐसी ही बात जो चुप हूँवर्ना क्या बात कर नहीं आती
ग़म-ए-हस्ती का 'असद' किस से हो जुज़ मर्ग इलाजशम्अ हर रंग में जलती है सहर होते तक
Devoted to the preservation & promotion of Urdu
A Trilingual Treasure of Urdu Words
Online Treasure of Sufi and Sant Poetry
World of Hindi language and literature
The best way to learn Urdu online
Best of Urdu & Hindi Books