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नज़्म
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
पीप बहती हुई गलते हुए नासूरों से
लौट जाती है उधर को भी नज़र क्या कीजे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
हास्य
जो पिक-अप करता रहे प्यार की बाँहों में मुझे
देख सकता हो जो अग़्यार की बाँहों में मुझे
साग़र ख़य्यामी
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ग़ज़ल
पान जो हाथ से कल ग़ैर के तू ने खाया
पी के लोहू को ग़रज़ घूँट रहे हम जूँ पीक