aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "साली"
मीराजी
1912 - 1949
शायर
साक़ी फ़ारुक़ी
1936 - 2018
साक़ी अमरोहवी
1925 - 2005
आफ़ताब शाह आलम सानी
1728 - 1806
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
1864 - 1916
आह संभली
लेखक
शैख़ सादी शीराज़ी
1210 - 1292
महेंद्र कुमार सानी
born.1984
सादिया सफ़दर सादी
born.1986
अब्दुल ग़फ़ूर साक़ी
वजीह सानी
born.1979
सुबोध लाल साक़ी
कैफ़ी संभली
अब्दुल हमीद साक़ी
सय्यद मोहम्मद ज़फ़र अशक संभली
1916 - 1977
किया था अह्द जब लम्हों में हम नेतो सारी उम्र ईफ़ा क्यूँ करें हम
जब वो बोहनी करती थी तो दूर से गणेश जी की उस मूर्ती से रुपये छुवा कर और फिर अपने माथे के साथ लगा कर उन्हें अपनी चोली में रख लिया करती थी। उसकी छातियां चूँकि काफ़ी उभरी हुई थीं इसलिए वो जितने रुपये भी अपनी चोली में रखती महफ़ूज़...
चुनांचे प्रभात फेरी निकालते हुए जब सुंदर लाल बाबू, उसका साथी रसालू और नेकी राम वग़ैरा मिलकर गाते, “हथ लाइयाँ कुम्हलाँ नी लाजवंती दे बूटे...” तो सुंदर लाल की आवाज़ एक दम बंद हो जाती और वो ख़ामोशी के साथ चलते-चलते लाजवंती की बाबत सोचता... जाने वो कहाँ होगी, किस...
त्रिलोचन ने पहली मर्तबा... चार बरसों में पहली मर्तबा रात को आसमान देखा था और वो भी इसलिए कि उसकी तबीयत सख़्त घबराई हुई थी और वो महज़ खुली हवा में कुछ देर सोचने के लिए अडवानी चैंबर्ज़ के टेरिस पर चला आया था। आसमान बिल्कुल साफ़ था। बादलों से...
गामा ज़ोर से अपनी घनी मूंछों में हँसा, भोलू शर्मा गया, “वो जो कल्लन है, उसने तो हद ही करदी है... साला रात भर बकवास करता रहता है। उसकी बीवी साली की ज़बान भी तालू से नहीं लगती... बच्चे पड़े रो रहे हैं मगर वो...” गामा हस्ब-ए-मा’मूल नशे में था।...
सबसे प्रख्यात एवं प्रसिद्ध शायर. अपने क्रांतिकारी विचारों के कारण कई साल कारावास में रहे।
प्रमुख और नई दिशा देने वाले आधुनिक शायर लन्दन के निवासी थे।
नए साल की आमद को लोग एक जश्न के तौर पर मनाते हैं। ये एक साल को अलविदा कह कर दूसरे साल को इस्तिक़बाल करने का मौक़ा होता है। ये ज़िंदगी के गुज़रने और फ़ना की तरफ़ बढ़ने के एहसास को भूल कर एक लमहाती सरशारी में महवे हो जाता है। नए साल की आमद से वाबस्ता और भी कई फ़िक्री और जज़्बाती रवय्ये हैं, हमारा ये इंतिख़ाब इन सब पर मुश्तमिल है।
सालीسالی
sister in law
पुराना, जीर्ण, (प्रत्य.) साल, जैसे ‘खुश्कसाली' कहत का साल ।
हिकायात-ए-बोस्तान-ए-सादी
नज़र ज़ैदी
शिक्षाप्रद
Gulistan-e-Saadi
Urdu Gulistan
मज़ामीन / लेख
Ajaib-ul-Qisas
दास्तान
रूह-ए-ग़ज़ल
मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
संकलन
हयात-ए-सादी
अल्ताफ़ हुसैन हाली
नॉन-फ़िक्शन
Bostan-e-Sadi
शायरी
इक़बालियात के सौ साल
मोहम्मद सुहैल उमर
इंतिख़ाब / संकलन
Gulistan-e-Mutarjim
इतिहास
Maasir-e-Alamgeeri
मोहम्मद साक़ी मुस्तइद ख़ाँ
Tajalliyat-e-Rabbani
मुजद्दिद अलफ़ सानी
पत्र
हिदायत नामा शायर
लेख
Kitab-e-Nauras
इब्राहीम आदिल शाह सानी
संगीत
उंदलुस अाैर ससली की मुस्लिम तारीख़-ओ-सक़ाफ़त
मोहम्मद इस्हाक़
इस्लामिक इतिहास
उन दोनों की शादी हो गई। एक साल के बाद उनके हाँ एक लड़का पैदा हुआ जिसका नाम जमील रखा गया। जब बिंदू अपने गांव में अच्छी तरह जम गया तो उसने भाई का पता लिया। जाके उससे मिला। दोनों बहुत ख़ुश हुए। बिंदू ने उससे कहा, “अब अल्लाह का...
राज की बीवी थी, राज के चार बच्चे थे, वो अच्छा ख़ाविंद और अच्छा बाप था। उसकी ज़िंदगी पर से चादर का कोई कोना भी अगर हटा कर देखा जाता तो आपको कोई तारीक चीज़ नज़र न आती। ये सब कुछ था, मगर इसके होते हुए भी मेरे दिल में...
एक साहब ने बयान किया कि मेरी बीवी दो ही बरस के अन्दर दाग़-ए-मुफ़ारक़त दे गईं। ज़रा सा लड़का एक फूसड़ा अपनी निशानी छोड़ गईं। मेरी एक बड़ी साली थीं जो शायद इसी इिन्तज़ार में पहले ही से रँडापा खे रही थीं। ख़ुशदामन साहिबा कहने लगीं, मियां तुम्हारी साली मौजूद...
उसके तंग माथे पर पसीने की नन्ही नन्ही बूंदें नमूदार हो गई थीं जैसे मलमल में पनीर को आहिस्ता से दबा दिया गया है... उसके मर्दाना वक़ार को धक्का सा पहुंचा था जब वो कान्ता के नंगे जिस्म को अपने तसव्वुर में लाता था। उसे महसूस होता था जैसे उसका...
इस मौज़े के लोग निहायत सरकश और फ़ित्ना पर्दाज़ थे जिन्हें इस बात का फ़ख्र था कि कभी कोई ज़मींदार उन्हें पाबंद-ए-अनान नहीं कर सका लेकिन जब उन्होंने अपनी बागडोर प्रदुम्न सिंह के हाथों में जाते देखी तो चौकड़ियाँ भूल गए। एक बदलगाम घोड़े की तरह सवार को कनखियों से...
शराब गले के लिए सख़्त ग़ैर मुफ़ीद है। लेकिन सहगल मरहूम सारी उम्र बलानोशी करते रहे। खट्टी और तेल की चीज़ें गले के लिए तबाहकुन हैं। ये कौन नहीं जानता? मगर नूर जहाँ पाव पाव भर तेल का अचार खा जाती है और लुत्फ़ की बात ये है कि जब...
क्यूँ हँसाए न मुझ से रिंद को बंगदुख़्त-ए-रज़ की बहन है साली है
नज़ीर ने कमरे को अब ज़रा ग़ौर से देखा, “दस रुपये ज़्यादा हैं यार?” करीम ने कहा, “बहुत ज़्यादा हैं, लेकिन क्या किया जाये। साला होटल का मालिक ही बनिया है। एक पैसा कम नहीं करता और नज़ीर साहब, मौज शौक़ करने वाले आदमी भी ज़्यादा की परवाह नहीं करते।”...
गोर्डन कॉलिज रावलपिंडी में वो राजा इंद्र था। उसके दरबार में वहां की तमाम परियां मुजरा अर्ज़ करती थीं... ख़ूबसूरत था, काफ़ी ख़ूबसूरत मगर उसका हुस्न मर्दाना हुस्न था। पतली नोकीली नाक जो यक़ीनन अपना काम कर जाती होगी, छोटी-छोटी गहरे भोसले रंग की आँखें जो उसके चेहरे पर सज...
जब पहली बार मैंने उन्हें देखा तो वो रहमान भाई के पहले मंज़िले की खिड़की में बैठी लंबी-लंबी गालियाँ और कोसने दे रही थीं। ये खिड़की हमारे सहन में खुलती थी और कानूनन उसे बंद रखा जाता था क्योंकि पर्दे वाली बीबियों का सामना होने का डर था। रहमान भाई...
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