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नज़्म
व-यबक़ा-वज्ह-ओ-रब्बिक (हम देखेंगे)
वो दिन कि जिस का वादा है
जो लौह-ए-अज़ल में लिख्खा है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
दम-ए-तक़रीर थी मुस्लिम की सदाक़त बेबाक
अदल उस का था क़वी लौस-ए-मराआत से पाक
अल्लामा इक़बाल
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नज़्म
लौह-ओ-क़लम
हम परवरिश-ए-लौह-ओ-क़लम करते रहेंगे
जो दिल पे गुज़रती है रक़म करते रहेंगे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
लौह दिल को ग़म-ए-उल्फ़त को क़लम कहते हैं
कुन है अंदाज़-ए-रक़म हुस्न के अफ़्साने का
फ़ानी बदायुनी
नज़्म
ख़्वाब जो बिखर गए
वो शौक़-ए-सादा-लौह की हसीन ख़ाम-कारियाँ
नई सहर के ख़ाल-ओ-ख़द, निगाह में बसे हुए
आमिर उस्मानी
नज़्म
ज़ौक़ ओ शौक़
लौह भी तू, क़लम भी तू, तेरा वजूद अल-किताब!
गुम्बद-ए-आबगीना-रंग तेरे मुहीत में हबाब!
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
नोशी गिलानी
क़ितआ
मता-ए-लौह-ओ-क़लम छिन गई तो क्या ग़म है
कि ख़ून-ए-दिल में डुबो ली हैं उँगलियाँ मैं ने
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
हसन कूज़ा-गर (2)
और मुझे लिखना भी कहाँ आता है?
लौह-ए-आईना पे अश्कों की फव्वारों ही से