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ग़ज़ल
बस्तियाँ ढूँढ रही हैं उन्हें वीरानों में
वहशतें बढ़ गईं हद से तिरे दीवानों में
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
इन अक़्ल के बंदों में आशुफ़्ता-सरी क्यूँ है
ये तंग-दिली क्यूँ है ये कम-नज़री क्यूँ है
असद मुल्तानी
ग़ज़ल
दिल हमारा है कि हम माइल-ए-फ़रियाद नहीं
वर्ना क्या ज़ुल्म नहीं कौन सी बेदाद नहीं
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
ग़ज़ल
हफ़ीज़ ताईब
ग़ज़ल
आ गया ज़ुल्फ़ के दम में दिल-ए-नादाँ अपना
अपने हाथों से किया हाल परेशाँ अपना
मोहम्मद यूसुफ़ रासिख़
ग़ज़ल
दिल बहलने का जहाँ में कोई सामाँ न हुआ
अपना हमदर्द कभी आलम-ए-इम्काँ न हुआ
पंडित जगमोहन नाथ रैना शौक़
ग़ज़ल
किसी तौर हो न पिन्हाँ तिरा रंग-ए-रू-सियाही
वो सब आँखें बुझ चुकी हैं कि जो दें मिरी गवाही
साबिर ज़फ़र
ग़ज़ल
मु'आफ़ कर मिरी मस्ती ख़ुदा-ए-अज़्ज़ा-व-जल
कि मेरे हाथ में साग़र है मेरे लब पे ग़ज़ल
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
ग़ज़ल
वो कहाँ जलवा-ए-जाँ-बख़्श बुतान-ए-देहली
क्यूँ कि जन्नत पे किया जाए गुमान-ए-देहली