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ग़ज़ल
दियत इस क़ातिल-ए-बे-रहम से क्या लीजिएगा
अपनी ही आँखों से अब ख़ून बहा लीजिएगा
शेर मोहम्मद ख़ाँ ईमान
ग़ज़ल
देख ओ क़ातिल-ए-बे-रहम गरेबाँ मेरा
बोसे लेता है गुलू के लब-ए-ख़ंजर के एवज़
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
ग़ज़ल
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
उधर वो बे-मुरव्वत बेवफ़ा बे-रहम क़ातिल है
इधर बे-सब्र-ओ-बे-तसकीन-ओ-बे-ताक़त मिरा दिल है
वलीउल्लाह मुहिब
ग़ज़ल
है है तुझे किस ज़ालिम-ए-बे-रहम ने रौंदा
हालत जो तिरी सब्ज़ा-ए-तुर्बत नहीं अच्छी
आशिक़ हुसैन बज़्म आफंदी
ग़ज़ल
हज़रत-ए-दिल इक बुत-ए-बे-रहम पर मफ़्तूँ हुए
बैठे-बिठलाए शगूफ़ा और ये पैदा किया
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
ग़ज़ल
ज़ालिम-ओ-बे-रहम दुनिया में नहीं गर आप सा
साबिर-ओ-शाकिर ज़ियादा मुझ से होगा कम कहीं
नवाब नजीर अल दोला
ग़ज़ल
न आया एक दिन भी वो बुत-ए-बे-रहम ऐ 'जौहर'
उठा कर हाथ काबे की तरफ़ माँगी दुआ बरसों
लाला माधव राम जौहर
ग़ज़ल
जो उस बे-रहम पर अपना दिल-ए-ख़ाना-ख़राब आया
गए सब्र-ओ-तहम्मुल होश-ओ-ताक़त इज़्तिराब आया
फ़ज़ल हुसैन साबिर
ग़ज़ल
वक़्त के दीदा-ए-बे-रहम को मा'लूम था क्या छीना है
ख़ाली हाथों को भरी आँख से देखा तो कोई नज़्म होई