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नज़्म
उरूक़-मुर्दा-ए-मशरिक़ में ख़ून-ए-ज़िंदगी दौड़ा
समझ सकते नहीं इस राज़ को सीना ओ फ़ाराबी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
स्वर्ण-सिंह इस ख़ाक का बेटा है हम-मकतब मिरा
अहद-ए-तिफ़्ली में था जो हम-राज़-ओ-हम-मशरब मिरा
अर्श मलसियानी
नज़्म
मिरी क़िस्मत में इस मय-ख़ाने का साग़र नहीं यारब
एवज़ में इस के मुझ को मशरब-ए-पीर-ए-मुग़ाँ दे दे
मोहम्मद सादिक़ ज़िया
नज़्म
बदल जाए अभी 'इन'आम' नज़्म-ए-शोरिश-ए-बातिल
ज़रा हम इत्तिबा'-ए-मशरब-ए-रूहानियाँ कर लें
इनाम थानवी
नज़्म
वो हम-मशरब वो हम-सोहबत जिन्हें अपना समझते थे
मिसाल-ए-सब्ज़ा-ए-बेगाना बेगानों में रहते हैं
तकमील रिज़वी लखनवी
नज़्म
जिस का मज़हब अम्न-जूई जिस का मशरब सुल्ह-ए-कुल
जिस के नग़्मों की लताफ़त है जवाब-ए-बर्ग-ए-गुल