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नज़्म
मौत और ज़ीस्त के संगम पे परेशाँ क्यूँ हो
उस का बख़्शा हुआ सह-रंग-ए-अलम ले के चलो
साहिर लुधियानवी
नज़्म
आनंद नारायण मुल्ला
नज़्म
एक भँवरे को ख़िज़ाँ में थी गुल-ए-तर की तलाश
ख़ुद सनम-ख़ाना-ए-आज़र को थी आज़र की तलाश
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
जो पलकों पर नहीं आते वो आँसू साथ लाया हूँ
मोहब्बत जब किसी संगम पे मिलती है मोहब्बत से
क़ैसर-उल जाफ़री
नज़्म
उजड़े घर में वो तहज़ीबों के संगम पर बैठा था
गर्म हम-आग़ोशी सदियों की होगी कितनी प्यार भरी
फ़हमीदा रियाज़
नज़्म
प्रयाग पे बिछड़ी हुई बहनें जो मिली हैं
पानी की ज़मीं पर भी तो कलियाँ सी खिली हैं
हामिदुल्लाह अफ़सर
नज़्म
तिरी आवाज़ में ग़ज़लों का धीमा-पन महकता है
कोई सुर है कोई लय है तिरी साँसों में सरगम है