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नज़्म
हमारा ख़ून भी सच-मुच का सेहने पर बहा होगा
है आख़िर ज़िंदगी ख़ून अज़-बुन-ए-नाख़ुन बर-आवर-तर
जौन एलिया
नज़्म
सिलसिला-ए-रोज़-ओ-शब साज़-ए-अज़ल की फ़ुग़ाँ
जिस से दिखाती है ज़ात ज़ेर-ओ-बम-ए-मुम्किनात
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
सुर्ख़ ओ कबूद बदलियाँ छोड़ गया सहाब-ए-शब!
कोह-ए-इज़म को दे गया रंग-ब-रंग तैलिसाँ!
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
इस से बद-तर लत नहीं है कोई ये लत छोड़िए
रोज़ अख़बारों में छपता है कि रिश्वत छोड़िए
जोश मलीहाबादी
नज़्म
ख़ुतूत-ए-रुख में जल्वा-गर वफ़ा के नक़्श सर-ब-सर
दिल-ए-ग़नी में कुल हिसाब-ए-दोस्ताँ लिए हुए
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
अब्र-ए-रहमत दामन-अज़-गलज़ार-ए-मन बर्चीद-ओ-रफ़त
अंदकै बर-ग़ुंचा हाए आरज़ू बारीद-ओ-रफ़्त
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
नेमतें सब बट चुकीं लेकिन न होना मुज़्महिल
सब को बख़्शे हैं दिमाग़ और ले तुझे देते हैं दिल
जोश मलीहाबादी
नज़्म
मैं एक पत्थर सही मगर हर सवाल का बाज़-गश्त बन कर जवाब दूँगा
मुझे पुकारो मुझे सदा दो