कौनसा नाम दें ऐसी बरसात को जिस के दामन में पानी भी है आग भी
हूक उठती रही रूह जलती रही दिल पिघलता रहा अश्क ढलते रहे
हम ने ग़म भर लिए हैं दामन में
जब मयस्सर कोई ख़ुशी न हुई
सब को दिल के दाग़ दिखाए एक तुझी को दिखा न सके
तेरा दामन दूर नहीं था हाथ हमीं फैला न सके