पानी पर शेर
उर्दू शायरी में पानी
अपने अलग-अलग रूप के बावजूद जीवन के रूपक के तौर पर नज़र आता है । पानी की रवानी असल में जीवन की गतिशीलता का उदाहरण है । अर्थात पानी का ठहर जाना जीवन का ठहर जाना है । पानी का रूपक अपने बहुत से अर्थ की अनिवार्यता की वजह से शायरी और मुख्य रूप से नई शायरी में ख़ूब नज़र आता है । उर्दू शायरी में पानी का रूपक कहीं कहीं ज़िंदगी की ख़ूँ-रेज़ी और तबाही के अर्थ शास्त्र को भी पेश करता है । यहाँ प्रस्तुत चुनिंदा शायरी में पानी के रूपक को देखा जा सकता है ।
अगर फ़ुर्सत मिले पानी की तहरीरों को पढ़ लेना
हर इक दरिया हज़ारों साल का अफ़्साना लिखता है
तुम उस के पास हो जिस को तुम्हारी चाह न थी
कहाँ पे प्यास थी दरिया कहाँ बनाया गया
हम इंतिज़ार करें हम को इतनी ताब नहीं
पिला दो तुम हमें पानी अगर शराब नहीं
वो जो प्यासा लगता था सैलाब-ज़दा था
पानी पानी कहते कहते डूब गया है
ये पानी ख़ामुशी से बह रहा है
इसे देखें कि इस में डूब जाएँ
मैं ने अपनी ख़ुश्क आँखों से लहू छलका दिया
इक समुंदर कह रहा था मुझ को पानी चाहिए
दूर तक फैला हुआ पानी ही पानी हर तरफ़
अब के बादल ने बहुत की मेहरबानी हर तरफ़
ऐसी प्यास और ऐसा सब्र
दरिया पानी पानी है
अंदर अंदर खोखले हो जाते हैं घर
जब दीवारों में पानी भर जाता है
वो मजबूरी मौत है जिस में कासे को बुनियाद मिले
प्यास की शिद्दत जब बढ़ती है डर लगता है पानी से
अगर ऐ नाख़ुदा तूफ़ान से लड़ने का दम-ख़म है
इधर कश्ती न ले आना यहाँ पानी बहुत कम है
उस से कहना कि धुआँ देखने लाएक़ होगा
आग पहने हुए जाउँगा मैं पानी की तरफ़
उबलते वक़्त पानी सोचता होगा ज़रूर
अगर बर्तन न होता तो बताता आग को
हर्फ़ अपने ही मआनी की तरह होता है
प्यास का ज़ाइक़ा पानी की तरह होता है
हँसता पानी रोता पानी
मुझ को आवाज़ें देता था
दोस्तो ढूँड के हम सा कोई प्यासा लाओ
हम तो आँसू भी जो पीते हैं तो पानी की तरह
हैरान मत हो तैरती मछली को देख कर
पानी में रौशनी को उतरते हुए भी देख
क़िस्से से तिरे मेरी कहानी से ज़ियादा
पानी में है क्या और भी पानी से ज़ियादा
वो धूप थी कि ज़मीं जल के राख हो जाती
बरस के अब के बड़ा काम कर गया पानी
अनगिनत सफ़ीनों में दीप जगमगाते हैं
रात ने लुटाया है रंग-ओ-नूर पानी पर
पानी ने जिसे धूप की मिट्टी से बनाया
वो दाएरा-ए-रब्त बिगड़ने के लिए था
ख़ाक हूँ उड़ता हूँ सच है कि मैं आवारा-मिज़ाज
पानी होता भी तो सैलाब में देखा जाता
जिन्हें हम बुलबुला पानी का दिखते हैं कहो उन से
नज़र हो देखने वाली तो बहर-ए-बे-कराँ हम हैं