मैं आज ज़द पे अगर हूँ तो ख़ुश-गुमान न हो
चराग़ सब के बुझेंगे हवा किसी की नहीं
ऐसा गुलशन की सियासत ने किया है पाबंद
हम असीरान-ए-क़फ़स आह भी करने के नहीं
नई लाशें बिछाने के लिए ही
गड़े मुर्दे उखाड़े जा रहे हैं
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