वक़्त पर चित्र/छाया शायरी

वक़्त वक़्त की बात होती

है ये मुहावरा हम सबने सुना होगा। जी हाँ वक़्त का सफ़्फ़ाक बहाव ही ज़िंदगी को नित-नई सूरतों से दो चार करता है। कभी सूरत ख़ुशगवार होती है और कभी तकलीफ़-दह। हम सब वक़्त के पंजे में फंसे हुए हैं। तो आइए वक़्त को ज़रा कुछ और गहराई में उतर कर देखें और समझें। शायरी का ये इंतिख़ाब वक़्त की एक गहिरी तख़्लीक़ी तफ़हीम का दर्जा रखता है।

सुब्ह होती है शाम होती है

सदा ऐश दौराँ दिखाता नहीं

सुब्ह होती है शाम होती है

गुज़रने ही न दी वो रात मैं ने

तुम चलो इस के साथ या न चलो

अब तिरी याद से वहशत नहीं होती मुझ को

और क्या चाहती है गर्दिश-ए-अय्याम कि हम

उन का ज़िक्र उन की तमन्ना उन की याद

सुब्ह होती है शाम होती है

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