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aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere

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वक़्त पर दोहे

वक़्त वक़्त की बात होती

है ये मुहावरा हम सबने सुना होगा। जी हाँ वक़्त का सफ़्फ़ाक बहाव ही ज़िंदगी को नित-नई सूरतों से दो चार करता है। कभी सूरत ख़ुशगवार होती है और कभी तकलीफ़-दह। हम सब वक़्त के पंजे में फंसे हुए हैं। तो आइए वक़्त को ज़रा कुछ और गहराई में उतर कर देखें और समझें। शायरी का ये इंतिख़ाब वक़्त की एक गहिरी तख़्लीक़ी तफ़हीम का दर्जा रखता है।

दिया बुझा फिर जल जाए और रुत भी पल्टा खाए

फिर जो हाथ से जाए समय वो कभी लौट के आए

जमाल पानीपती

बाबू-गीरी करते हो गए 'आली' को दो साल

मुरझाया वो फूल सा चेहरा भूरे पड़ गए बाल

जमीलुद्दीन आली

मोती मूंगे कंकर पत्थर बचे कोई भाई

समय की चक्की सब को पीसे क्या पर्बत क्या राई

जमाल पानीपती

Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi

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