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फूल शायरी

फूल को विषय बनाने वाली चुनिंदा शायरी में आप महसूस करेंगे कि शायरों ने फूल को किस-किस तरह से देखा और चित्रित किया है । फूल प्रकृति की सुंदरता का जीता-जागता उदाहरण है । उर्दू शायरी में फूल की ख़ूबसूरती और कोमलता को महबूब की सुंदरता का रूपक बना कर भी पेश किया गया है । उर्दू शायरी में फूल के मुरझाने को महबूब की उदासी और बे-रंग ज़िंदगी का प्रतीक भी माना गया है । फूल के साथ काँटों को भी नए-नए संदर्भों में उर्दू शायरी ने विषय बनाया है । यहाँ प्रस्तुत शायरी में आप को महसूस होगा कि फूल और काँटे के माध्यम से उर्दू शायरी ने कई दिलचस्प रूपक तलाश किए हैं और उसकी व्याख्या भी की है ।

फूल गुल शम्स क़मर सारे ही थे

पर हमें उन में तुम्हीं भाए बहुत

मीर तक़ी मीर

सुना है उस के बदन की तराश ऐसी है

कि फूल अपनी क़बाएँ कतर के देखते हैं

अहमद फ़राज़

मैं चाहता था कि उस को गुलाब पेश करूँ

वो ख़ुद गुलाब था उस को गुलाब क्या देता

अफ़ज़ल इलाहाबादी

शबनम के आँसू फूल पर ये तो वही क़िस्सा हुआ

आँखें मिरी भीगी हुई चेहरा तिरा उतरा हुआ

बशीर बद्र

ख़ुदा के वास्ते गुल को मेरे हाथ से लो

मुझे बू आती है इस में किसी बदन की सी

नज़ीर अकबराबादी

तिरे लबों को मिली है शगुफ़्तगी गुल की

हमारी आँख के हिस्से में झरने आए हैं

आग़ा निसार

तश्बीह तिरे चेहरे को क्या दूँ गुल-ए-तर से

होता है शगुफ़्ता मगर इतना नहीं होता

अकबर इलाहाबादी

मेहर-ओ-मह गुल फूल सब थे पर हमें

चेहरई चेहरा हमें भाता रहा

मीर तक़ी मीर

अब तक तिरे होंटों पे तबस्सुम का गुमाँ है

हम को तो है महबूब यही आध-खिला फूल

फख्र ज़मान

तू ही वो फूल है जो है महबूब

पत्ते पत्ते का डाली डाली का

नादिर शाहजहाँ पुरी

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