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बशीर बद्र: जदीद ग़ज़ल का रौशन सितारा

बशीर बद्र सरल अभिव्यक्ति और विषयों की ताज़गी के कवि हैं। वह रोज़मर्रा की चीज़ों को कविता में बदल देते हैं, इस हद तक कि पाठक हैरान हो जाता है। पेश हैं उनके कुछ चुनिंदा अशआर।

उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो

जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए

बशीर बद्र

हम भी दरिया हैं हमें अपना हुनर मालूम है

जिस तरफ़ भी चल पड़ेंगे रास्ता हो जाएगा

बशीर बद्र

ज़िंदगी तू ने मुझे क़ब्र से कम दी है ज़मीं

पाँव फैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है

बशीर बद्र

यहाँ लिबास की क़ीमत है आदमी की नहीं

मुझे गिलास बड़े दे शराब कम कर दे

बशीर बद्र

हम तो कुछ देर हँस भी लेते हैं

दिल हमेशा उदास रहता है

बशीर बद्र

लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में

तुम तरस नहीं खाते बस्तियाँ जलाने में

बशीर बद्र

अभी राह में कई मोड़ हैं कोई आएगा कोई जाएगा

तुम्हें जिस ने दिल से भुला दिया उसे भूलने की दुआ करो

बशीर बद्र

अगर फ़ुर्सत मिले पानी की तहरीरों को पढ़ लेना

हर इक दरिया हज़ारों साल का अफ़्साना लिखता है

बशीर बद्र

तुम्हारे साथ ये मौसम फ़रिश्तों जैसा है

तुम्हारे बा'द ये मौसम बहुत सताएगा

बशीर बद्र

चराग़ों को आँखों में महफ़ूज़ रखना

बड़ी दूर तक रात ही रात होगी

बशीर बद्र

अजीब शख़्स है नाराज़ हो के हँसता है

मैं चाहता हूँ ख़फ़ा हो तो वो ख़फ़ा ही लगे

बशीर बद्र

ख़ुदा ऐसे एहसास का नाम है

रहे सामने और दिखाई दे

बशीर बद्र

आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा

कश्ती के मुसाफ़िर ने समुंदर नहीं देखा

बशीर बद्र

काग़ज़ में दब के मर गए कीड़े किताब के

दीवाना बे-पढ़े-लिखे मशहूर हो गया

बशीर बद्र

वो इत्र-दान सा लहजा मिरे बुज़ुर्गों का

रची-बसी हुई उर्दू ज़बान की ख़ुश्बू

बशीर बद्र

सब लोग अपने अपने ख़ुदाओं को लाए थे

इक हम ही ऐसे थे कि हमारा ख़ुदा था

बशीर बद्र

मैं ने दिन रात ख़ुदा से ये दुआ माँगी थी

कोई आहट हो दर पर मिरे जब तू आए

बशीर बद्र

वो इंतिज़ार की चौखट पे सो गया होगा

किसी से वक़्त तो पूछें कि क्या बजा होगा

बशीर बद्र
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