ज़िन्दगी तेरे लिए ज़ह्र पिया है मैंने :ख़लील-उर-रहमान आज़मी
ख़लील-उर-रहमान आज़मी उर्दू के जदीद शायर और नक़्क़ाद हैं । उन्होंने अदब की नई तफ़हीम-ओ-ताबीर के नए फ़न्नी पैमानों को रिवाज दिया और ग़ज़ल-गोई के मैदान में ख़ास रंग और आहंग पैदा किया है।
देखने वाला कोई मिले तो दिल के दाग़ दिखाऊँ
ये नगरी अँधों की नगरी किस को क्या समझाऊँ
तमाम यादें महक रही हैं हर एक ग़ुंचा खिला हुआ है
ज़माना बीता मगर गुमाँ है कि आज ही वो जुदा हुआ है
हमारे ब'अद उस मर्ग-ए-जवाँ को कौन समझेगा
इरादा है कि अपना मर्सिया भी आप ही लिख लें
ज़रा आ के सामने बैठ जा मिरी चश्म-ए-तर के क़रीब आ
मिरे आइने में भी देख ले कभी अपनी ज़ुल्फ़ की बरहमी